Wednesday, November 04, 2009

।। स्तुति: ।।


वक्रतुंड महाकाय सुर्य कोटि संमप्रभ:।
निर्विधन कुरु मे देव कार्येषु सर्चदा।।
या कुनन्देनन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वरदण्ड मण्डितकरा या श्वेत पदमासना।।
या ब्रम्हाच्युतशंकर प्रभृतिभिर्देवै सदावन्दिता।।
सा मां पातु सरस्वति भगबति नि:शेष जाड्यापहा।।

साजिव नैन धरे धनु सायक।भगत विपत्ति भजन सुखदायक।।
मंगल भवन अमंगल हारी।द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारि।।

जनक सिता जनजननि जानकि। आतिशय प्रिय करुणा निधान की।।
ताके जगपद कमल मनावऊँ।साजु कृपा निर्मल मति पावऊँ।।

प्रनवउ पवन कुमार,रख बन पावक गानघन,
जासु हृदय-आगार बसहिं राम शर चार धर।
कुन्द इन्दु सम देह उमा रमन करुणा अयन,
जाहि दीन पर नेह करहु कृपा मर्दन मयन।

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